मैं ये नहीं कहता कि सब मेरी सुने, मेरी करें
लेकिन ज़रा सी मुरव्वत तो मेरे हक़ में हो
तुम्हारे बेरूखियाँ सभी सर आँखों पे लेकिन
एक छोटी सी मुस्कुराहट तो मेरे हक़ में हो
हर तरफ़ है ज़ोर तुम्हारी कामयाबियों का
मेरी कमज़ोरियों की ताक़त तो मेरे हक़ में हो
तुम जिस हाल में रखो मैं ख़ुश रहूँ हरदम
अरे! मेरी अपनी हालत तो मेरे हक़ में हो
दिल्लगी, रुसवायी, दोस्ती, अदावत,
‘ओझल’ एक मुहब्बत तो मेरे हक़ में हो