हम दोनों का दर्द है एक, एक सी मजबूरी है
सपने एक से होते हैं, फिर भी कितनी दूरी है
शोर भरी इस दुनिया में मेरा हासिल खामोशी
जितनी तू समझ सके, उतनी बात ज़रूरी है
लम्हा लम्हा बीता हूं मैं, रेशा रेशा उधड़ा हूं
तुझ बिन यूं जीते रहना भी कैसी माज़ूरी* है
गर चाहत से शिकवा है, रहो हज़ारों पर्दों में
देख तुम्हें धड़का है, ये दिल की बे-क़ुसूरी है
गाता फिरता गली गली देखो पागल ‘ओझल’
दीप जले हैं घर घर लेकिन चारसू बेनूरी है
* माज़ूरी = Disability; helplessness