महफ़िल में ख़ुद को तनहा पाया मैंने
तनहाई में भी दिल ख़ूब लगाया मैंने
अश्क़ बहुत थे मेरी आँखों में लेकिन
सिर्फ़ हँसता हुआ चेहरा दिखाया मैंने
ज़िंदगी की एक और चोट जानकर
मौत को भी कलेजे से लगाया मैंने
मेरी तारीक रातों का चर्चा क्यूँकर
तुम्हारी राहों में तो दीप जलाया मैंने
अपने ग़मों को ग़ज़लों की सूरत देके
ज़माने का ख़ूब दिल बहलाया मैंने
तुम्हारी यादों के चिराग़ों को अक्सर
ख़्वाबों में जगमगाता हुआ पाया मैंने