बीते दिनों में यूं महसूस हुआ मुझको
वक़्त ने रोज़ नया ज़ख्म दिया मुझको
मैं ना कहता था जल जाएगा तू भी
ऐ नादां महबूब, तूने क्यूं छुआ मुझको
तू ही तन्हा नहीं, सब हैं अकेले यहां
वीराने में इक आवाज़ ने कहा मुझको
बहुत सुकून से गुज़र रहे थे दिन मेरे
छेड़ गई दश्त में बाद-ए-सबा मुझको
साहिल की रेत पे लिखा, मिटा दिया
बेचैन लहरों ने जो नाम दिया मुझको