ना छेड़ा कीजे

फूल को, तितली को ना छेड़ा कीजे
हर हसीं शय से दूरी ही रखा कीजे

वो पलकों पे रहे आपकी देर तलक
ख्वाब आए तो आंखें ना खोला कीजे

राब्ता आपसे अब कोई नहीं माना
सामना हो तो नज़रें तो ना फेरा कीजे

कैसी उदास रात है ये चिराग रात
आप आएं तो हर शमा बुझाया कीजे

देखते देखते दिन और एक बीत चला
शाम के वक़्त ना खुद को तन्हा कीजे

हमने जब कह दिया कोई बात नहीं
आप वो बात फिर हमसे ना पूछा कीजे

मुस्कुरा के सीने से लगाते है आप क्यूं
भरे ज़ख्मों को यूं तो ना कुरेदा कीजे

आपकी आंखों से दिल में उतर गया जो
क्या ज़रूरी है उसको ही अपना कीजे

 

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