न देना कभी

कोई तलाश हो खुद को भुला न देना कभी
किसी के हाथ में हस्ती थमा न देना कभी

लाज़मी है नजर हो उस जहां पे मगर
तुम उस उम्मीद पे घर भुला न देना कभी

इक इशारे पे तुम्हारे नाचता है जहां
तुम इस गुमाँ में होश गँवा न देना कभी

इक चराग भी काफ़ी है रौशनी के लिए
तुम हवस में घर अपना जला न देना कभी

भले हसीं हों कितने भी चाँद औ’ सूरज
तुम अपने घर के दीपक बुझा न देना कभी

कोई तकेगा रास्ता तुम्हारा बरसों बरस
दिया था तुमने जो वादा भुला न देना कभी

तुम्हारे हर कदम पर है नजर जिनकी
तुम उनकी आँख से खुद को गिरा न देना कभी

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Discover more from ओझल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading