पहाड़ी इलाकों में चलते चलते
मिल गई मुझे एक नदी
छुपी हुई ऐसे कहीं
जहां कोई आता जाता नहीं
टीलों पर कूदती, अठखेलियाँ करती
जाने कितनी सदियों से बहती हुई
एक नदी मिली मुझे।
नदी में नहा, खूब खुश हुआ
बहुत देर बैठा रहा किनारे
सुनता रहा खामोशियाँ
फिर चल दिया।
लौटते में ज़रा सा भटक गया
देर तक परेशान हुआ।
छा रहा था अंधेरा
लग रहा था डर
तभी बीच झुरमुटों के दिखा
एक पुराना, खोया हुआ रास्ता।
देख रास्ता
मैं और खुश हुआ
थोड़ी ही देर में आ पहुंचा
एक जानी पहचानी डगर पर।
रात सोचता रहा देर तक
बरसों किसी के नहीं गुजरने से
शायद मरने लगते हैं रास्ते
मगर सदियों कोई न देखे
तो भी बहती रहती है नदी
तो मैं…
नदी हूं या रास्ता?