वो जाने तमन्ना अब इधर नहीं आती
वादा करती तो है मगर नहीं आती
तूफान समंदर में आता है अचानक
फिर कोई भी कश्ती घर नहीं आती
आसुओं से भीगी है कुछ इस क़दर
आईनों को ये सूरत नज़र नहीं आती
कुछ बातें मिलने पे ही हो सकती है
फ़ोन पे आवाज़ अक्सर नहीं आती
इस क़दर कार-ए-जहां में हूं मुब्तिला
मुझे तो खुद अपनी खबर नहीं आती
जाने कब से चले जा रहे हो बोलो तो
क्या सच में मंज़िल नज़र नहीं आती
है डर टूट ना जाएं सपने इसी लिए
शायद मुझे नींद रात भर नहीं आती