हाँ! ये सच है तनहा नहीं हूँ
कैसे कहूँ तुझे ढूँढता नहीं हूँ
दर-ओ-दीवार राह देखते हैं
कई दिनों से घर गया नहीं हूँ
कश्ती रही लहरों के भरोसे
साहिल पे कभी ठहरा नहीं हूँ
मैं अकेला चिराग़ था लेकिन
किसी तूफ़ाँ से सहमा नहीं हूँ
याद आ रहीं हैं आँखें तुम्हारी
कमाल है इन्हें भूला नहीं हूँ