दुख

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दिन बदलेंगे

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इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

अभी अभी नया साल था मनाया हमने
नए संकल्पों को था अपनाया हमने
थे पक्के इरादे मगर मसरूफ़ थे इतने
अभी तो अमल को दिन मिले भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

बाग में गुलमोहर अभी बिछे भी नहीं
गर्मियों के दिन जैसे ढले भी नहीं
लेके दोनों हाथों में गुलाल हमने
गाल उनके प्यार से रंगे भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

है बारिश का मौसम बहाल अब तक
सजन बिन है जीना मुहाल अब तक
सामने से वो गुज़रे बातें भी की मगर
हम बेसाख्ता गले से लगे भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे आ गया दिसंबर?

नमी है जो घर में, नमी आंखों में भी
है तुम्हारी कमी सांसों में, बांहों में भी
ख़्वाब थे हसीं क्योंकि उनमें थे तुम
सो हम उस नींद से जगे भी नहीं
इतनी जल्दी कैसे जा रहा दिसंबर?