कैसा हूँ मैं

सामने तू है, औ’ तेरी याद लिए बैठा हूँ मैं
रख दे हाथ दिल पे ज़रा पूछ तो कैसा हूँ मैं

दश्त में हर गाम दिखाई देती है सूरत तेरी
सराबों में डूबा हूँ, किस क़दर प्यासा हूँ मैं

खड़ा हूँ तेरे मुक़ाबिल मैं नेज़े सम्भाले मगर
पसे-जिरह-बख़्तर बिलकुल तेरे जैसा हूँ मैं

ओहदों, तमग़ों, रिसालों से कोई खुदा होता नहीं
गर तू मुझसे नेक है, तेरे सामने झुकता हूँ मैं

झूठ के बाज़ार में सच बेचता हूँ “ओझल”
क्या ताज्जुब सबकी आँख में चुभता हूँ मैं

गुलाबी होली

काला पीला लाल गुलाबी
हर आँगन हर डाल गुलाबी
देखो सबके गाल गुलाबी
सोहनी और महिवाल गुलाबी
सबका हो गया हाल गुलाबी
ये होली क्या, साल गुलाबी

Happy Holi

होली मुबारक

आप सबको होली मुबारक!

रंग में भीग जाने वाली
मट्ठी-गुझिया खाने वाली
तन-मन गुदगुदाने वाली
घर-आँगन महकाने वाली
होली मुबारक।

सबको गले लगाने वाली
राग-द्वेष मिटाने वाली
दिलों को मिलाने वाली
ख़ूब मुस्कुराने वाली
होली मुबारक।

शोर मचाने वाली
थोड़ा बहकाने वाली
झूम-झूम गाने वाली
मस्ती मनाने वाली
होली मुबारक!

 

ये भी तो है

सिर्फ़ पत्थर नहीं, इन में पानी भी तो है
दिलों की कोई अपनी कहानी भी तो है

आज हिक़ारत से जो देखते हैं तो क्या
इसी बहाने शक्ल पहचानी भी तो है

 

ये तो ग़लत है ना

चुपचाप ज़ुल्म सहना, ये तो ग़लत है ना
सच से मुँह फेर लेना, ये तो ग़लत है ना

इश्क़ में सुध-बुध खोना तो लाज़मी है
रात रात तारे गिनना, ये तो ग़लत है ना

तुम्हें यक़ीं नहीं है वफ़ा पे मेरी ना सही
सरे-महफ़िल कहना, ये तो ग़लत है ना

मुझसे मुँह फेरना ठीक है मगर बाद उसके
छुप-छुप मुझे देखना, ये तो ग़लत है ना

मेरे गुनाहों की फ़ेहरिस्त लम्बी है फिर भी
खताएँ माफ़ ना करना, ये तो ग़लत है ना

 

और बढ़ा देता हूँ

रात की तारीकियाँ और बढ़ा देता हूँ
आज मैं तेरे ख़त सारे जला देता हूँ

तेरा नाम दिल की रेत पर हर्फ़ हर्फ़
अपने खूं से लिखता हूँ, मिटा देता हूँ

मेरे गुनाहों की फेहरिस्त लाया है तू
आ देख तुझे आईना दिखा देता हूँ

मुझसे बच्चों के आंसू नहीं देखे जाते
चंद किस्से नादानी के सुना देता हूँ

मेरे यार! तुझे और भी लुत्फ़ आएगा
तेरी मय में कुछ आंसू मिला देता हूँ

 

सकती है

बहुत ज़ियादा ख़ुशी रुला भी तो सकती है
बे-इंतेहा ग़म में हँसी आ भी तो सकती है

तुझे अपने खुदा होने पे गुमान है मगर
मौज-ए-तारीख तुझे भुला भी तो सकती है

फिर आया है साहिल नज़रों के दस्तरस
फिर कोई लहर मुझे बहा भी तो सकती है

जिसकी मासूमियत पे दिल निस्सार हुआ
उसकी चालाकी दिल दुखा भी तो सकती है

मेरे जलते घर का तमाशा देखने वालों
ये आग-ए-हवस तुम्हें जला भी तो सकती है

मेरे जिस्म में जो आग लगाई है तेरे लम्स ने
वो आग अपने बोसों से बुझा भी तो सकती है

ये माना मैं रूठा हूँ किसी छोटी सी बात पे
वो ज़रा मुस्कुरा के मुझे मना भी तो सकती है

हाँ वो नाराज़ बहुत है “ओझल” से मगर
उसकी कोई ग़ज़ल गुनगुना भी तो सकती है

 

फीकी चाय

आज की चाय
वैसी ही बनी है
उतना ही दूध,
पत्ती और पानी भी वही है।
मगर फिर भी
स्वाद कुछ अलग सा है
या शायद मेरी
ज़ुबाँ ही फीकी है।
सच तो ये है
बात बस इतनी सी है
आज फिर
तुम्हारी कमी सी है।

 

तुम्हीं कहो जो हमारी कहानी है

तुम्हीं कहो जो हमारी कहानी है
क्या अब भी सबसे छुपानी है

दुनिया को जला ना डाले कहीं
तेरी आँख में जो इक बूँद पानी है

मैं उसको ख़ुदा भी मान लूँ मगर
कोई कहे उसने कब मेरी मानी है

जिस कहानी को मैं भूल चुका था
उसकी जिद्द है वही दोहरानी है

वस्ल की घड़ी मिली भी तो दो घड़ी
औ’ उम्र-ए-फ़िराक़ सदियों पुरानी है

 

ख़्वाहिशें

कैसी अजीब ख़्वाहिशें …

तुम आओ मिलने
मगर दूर ही बैठो मुझसे
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए
देखो मेरी तरफ़
कुछ ऐसे
कि मैं…
प्याला बन जाऊँ

और फिर दिन भर
तुम्हारे होंठों की
तपिश से सुलगता रहूँ