चेहरे पे जो रंग ए गुल खिला है पतझड़ के मौसम में
क्या तुमको कोई तुमसा मिला है पतझड़ के मौसम में
आंगन में दौड़ते फिरते हैं चीखते हुए जर्द पत्ते
कोई पूछे इनसे क्या इब्तिला है पतझड़ के मौसम में
मौसम ए बहार में जिसकी कसमें खाई थीं हमने
उस इश्क का खूॅं बहा है पतझड़ के मौसम में
हजार बार समझाया है अपने दिल को यारों
मगर ये जां देने पे तुला है पतझड़ के मौसम में
उसके सीने पे रख कर सिर रोए हम देर तलक
बोझ जी का हल्का हुआ है पतझड़ के मौसम में
मेरी पेशानी पे देखो बरसों की लिखावट है
यादों का मौसम लौटा है पतझड़ के मौसम में
कोई पंछी, कोई बच्चा, कोई प्रेमी, ना कोई आस
घर खामोशी में मुब्तिला है पतझड़ के मौसम में