तुम्हारे हाथों की लाठियां
मेरे माथे को फोड़ती हुई
मेरे लहू को तेल की तरह पीती हैं
और प्रबल होती हैं।
तुम्हारी बेल्ट का चाबुक
मेरी पीठ पर प्रहार करता है
मेरे बदन पर लाल काले निशान छोड़ता है
मेरी मांसपेशियों को उधेड़ता है।
तुम्हारी सभ्यता का जूता
मेरी गर्दन पे पड़ा है
उसे नुकीली हील तले रौंदता है
मेरा दम घोंटता है।
मैं तुमसे चीख के कहना चाहता हूं
अब ये ज़ुल्म और नहीं सहूंगा मैं
और चुप नहीं रहूंगा मैं
मगर
सिर्फ़ इतना कह पाता हूं
मैं सांस नहीं ले सकता
मैं सांस…
नहीं…
ले सकता।