सफर तवील है, पुराना है
चले इक उम्र, चलते जाना है
मुखौटों के शहर में लोगों ने
मुझे तबस्सुम से पहचाना है
ढूँढ ही लेते हैं राह दिलावर
थकान का तो बस बहाना है
अजीब शर्त रखी है मेरे यार ने
दर्द सहना है, मुस्कुराना है
मैं तुझ तक आऊंगा भला कैसे
मेरी राह में इक ज़माना है