इक पंछी राख के ढेरे से निकलेगा
सूरज फिर घने अंधेरे से निकलेगा
मुश्किलों में घिरा है तो डर कैसा
अभिमन्यु तोड़ के घेरे से निकलेगा
इक पंछी राख के ढेरे से निकलेगा
सूरज फिर घने अंधेरे से निकलेगा
मुश्किलों में घिरा है तो डर कैसा
अभिमन्यु तोड़ के घेरे से निकलेगा