टुकड़ों में ज़िन्दगी – 3

टुकड़ों में मिलती है
ज़िंदगी सबको हमेशा

छोटे नाज़ुक टुकड़े
जैसे समन्दर में खेलती
लहरों पे कोई
बुलबुला हो पानी का।

और पानी के बुलबुलों की
ज़ात क्या, बिसात क्या ?

क्या समन्दर को है ख़बर
कि उसकी लहरों ने
जाए हैं बुलबुले हज़ारों ?

लेकिन है ना ताज्जुब की बात
कि हर बुलबुला
रहता है अपनी
हस्ती के ग़ुरूर में
ख़ुद को समन्दर का खुदा समझता है।

गर इस बात की भनक
कभी लहरों को लगती
तो वह कितना हँसती?

ज़रा सोचो तो…

 

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Leave a comment

%d bloggers like this: