उम्र क्या ऐसे ही बसर होगी
हर दुआ यूँ ही बेअसर होंगी
जितना तवील इन्तज़ार-ए-वस्ल
मुलाक़ात उतनी मुख़्तसर होगी
बेचैनियों की वजह है जो मेरी
यक़ीनन इनसे बेख़बर होगी
मेरी यादों को सिलाइयाँ बना
ख़्वाबों के बुन रही स्वेटर होगी
छत पे चहलक़दमी में उसकी
आज चाँदनी भी हमसफ़र होगी
नींद को तरसते हैं ख़्वाब मेरे
बड़ी तारीक कल सहर होगी
रात कटती नहीं जुदाई की ‘ओझल’
एक उम्र भला कैसे बसर होगी