जब लिख चुके हो तो मिटाना कैसा
जो हाथ पकड़ा है तो छुड़ाना कैसा
तुम इज़हार-ए-वफ़ा क्यूँ नहीं करते
गर इश्क़ है तो फिर छुपाना कैसा
ख़फ़ा हो के कुछ यूँ हसीन लगते हो
सोचता हूँ अब तुमको मनाना कैसा
हमारा क़िस्सा मुकम्मल ना हो पाएगा
इसे यहीं ख़त्म करो, और बढ़ाना कैसा
यक़ीं नहीं आता इतने बेरहम हो तुम
इक बार ना पूछा, है मेरा दीवाना कैसा
मैं छोटा सही अपने ईमान पे क़ायम हूँ
जुगनू से पूछो रात भर जगमगाना कैसा