कल जब युद्ध खत्म होगा
तुतुहरियां बजेंगी, झंडे झुकेंगे
इक दूजे पे तानी हुई बंदूकें
कांख में दबाए
सैनिक पीछे हटेंगे
घायल अपने घर लौटेंगे
जले हुए शहरों की
उजड़ी उदास गलियों में
कुछ बच्चे फुटबॉल खेलते फिर मिलेंगे
आसमां पे छाई कालिमा
धीरे धीरे छंटने लगेगी
सड़क किनारे छोटे छोटे सूरजमुखी फिर अंगड़ाई लेंगे
इन्हें देखने के लिए मगर
शायद तुम ना होगे
शायद हम न होंगे।
रह जाएगी फिर भी
एक अधूरी सी,
अस्फुट स्वर में
कांपती हुई
कविता।