कुछ शब्द तुम लिखो, कुछ बाब मैं लिखूँगा
किताब का हर सफ़हा भर जाएगा यूँ ही
इक क़दम तुम चलो, एक मील मैं चलूँगा
ये सफ़र सदियों का कट जाएगा यूँ ही
ऐसा भी क्या मिलन, जो हों इतनी दूरियाँ
अधूरी ख़्वाहिशें, शिकायतें, मजबूरियाँ
कुछ मिसरे तुम कहो, एक ग़ज़ल मैं कहूँगा
वक़्त मुलाक़ात का कट जाएगा यूँ ही
मैं तुम्हारी बन्द चौखट पे मुरझाता गुलाब
तुम मेरी अधखुली आँखों में कोई ख़्वाब
इक हाथ तुम बढ़ाओ, पीछे ना मैं हटूँगा
ये फ़ासला जन्मों का घट जाएगा यूँ ही