ज़िंदगी ही तो है

संजीदगी से क्या लेना इसे, ज़िंदगी ही तो है
निकला कौन ज़िंदा यहाँ से, ज़िंदगी ही तो है

जिस्म सारे छलनी हैं अपनी हसरतों से यहाँ
कोई महफ़ूज़ भी रहे कैसे, ज़िंदगी ही तो है

उम्र गुज़र जाती है तदबीर खोजते ख़्वाबों की
ख़्वाहिशों की लम्बी क़तारें, ज़िंदगी ही तो है

हो सुकूत-ए-तन्हाई या फिर शोर-ए-महफ़िल
ये दोनों दो पहलू हैं जिसके, ज़िंदगी ही तो है

गुज़रती हर इंसान की, अकेले ही मगर फिर भी
सब हमदम खोजते जिसमें, ज़िंदगी ही तो है

बाशिंदे हों महलों के, या गंदी बस्ती में रहते हों
दुख साथ ही चलते हैं सबके, ज़िंदगी ही तो है

हो जाता शुरू मौत का सफ़र, पैदा होते ही
क्यूँ सब अपनी लाश हैं ढोते, ज़िंदगी ही तो है

हाँ! दर्द बहुत हैं इसमें, अंजाम इसका मौत मगर
है ख़ूबसूरत ग़र देखें ग़ौर से, ज़िंदगी ही तो है

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