ज़िंदगी

बंद होठों से क्या बुदबुदाती है ज़िंदगी
इक भूली कहानी दोहराती है ज़िंदगी

हज़ार शिकवे हों, सब भूल जाता हूं
जब मुझको गले से लगाती है ज़िंदगी

हां वो शख़्स जान से प्यारा था हमें
तू उसके किस्से क्यूं सुनाती है ज़िंदगी

रह ए दुनिया रहता है नाम किसका
नक्श कुछ इस तरह मिटाती है ज़िंदगी

सुनना गौर से गज़ल ओझल की कभी
हर शेर में इसके गुनगुनाती है ज़िंदगी

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Leave a comment

%d bloggers like this: