दूरियां जब बढ़ती हैं तो बढ़ जाती है खामुशी
फिर उन फासलों को और बढ़ाती है खामुशी
शोर भरी इस दुनिया में सुनाई देगा और क्या
हां! अगर चुप बैठो तो सब सुनाती है खामुशी
टूटे दिल को जोड़ने की तरकीबें सब व्यर्थ हुईं
साथ बैठो और सुनो, क्या बताती है खामुशी
दिन के कोलाहल से घबरा जाता है दिल मेरा
रात की तन्हाइयों में शोर मचाती है खामुशी
खामुशी से घबरा के खामुशी तक आता हूं
थपकियां देदे कर मुझको सुलाती है खामुशी
हमारे तबस्सुम से गुलज़ार हैं महफ़िलें मगर
सच पूछो तो हमको बहुत सताती है खामुशी