शहर सुनसान पड़ा है, कोई जब से चला गया
हर रास्ता डरा डरा है, कोई जब से चला गया
यूँ तो डालों पर उसकी कितने ही परिंदे बैठे हैं
शजर तनहा खड़ा है, कोई जब से चला गया
नदी चुप सी रहती है, हवा भी चलती है मद्धम
गुलों का रंग उड़ा है, कोई जब से चला गया
महफ़िल में जी घबराता है, तन्हाई में आँसू आते हैं
ये मुझे क्या हुआ है, कोई जब से चला गया
उसकी हँसी गूँजती है इन वीरानों में आज भी
मगर ये घर रोता है, कोई जब से चला गया
हर गली में, हर दिल में, यारों की हर महफ़िल में
देखो उसका चर्चा है, कोई जब से चला गया
उसकी आमद से जैसे कई दीप जला करते थे
हर दिल बुझा बुझा है, कोई जब से चला गया