क्या अब ये दर्द तुमसे सम्भाला नहीं जाता
थक गए पाँव, काँटा निकाला नहीं जाता
एक बड़ी ज़िम्मेदारी है भरोसा निभाना भी
बोझ वफ़ा का सबसे सम्भाला नहीं जाता
हर तबस्सुम से नयी चोट मिलती है दिल को
यूँ शीशे पे पत्थर तो उछाला नहीं जाता
जवानी गुज़ारी है ज़रूर इश्क़ में गुम हमने
ये रोग मगर हमसे और पाला नहीं जाता
इक उम्र की मशक़्क़त का सिला आब-ए-हयात
गर है तो समंदर अब खंगाला नहीं जाता