हर रोज़ उतर आती है लम्बी उदास शाम
कई रंगों में नहाती है लम्बी उदास शाम
जिन परिंदों का नहीं ठिकाना कोई, उन्हें
आग़ोश में सुलाती है लम्बी उदास शाम
कटेगी कैसे तुम ही बताओ, बिन तुम्हारे
मुझे रास नहीं आती है लम्बी उदास शाम
प्याली चाय की कब की ठंडी हो चली
आँखों में थरथराती है लम्बी उदास शाम
हर नया दिन एक नई धुन लेके आता है
पुराने गीत सुनाती है लम्बी उदास शाम
जिन्हें हम भूलना चाहें माज़ी के वही पल
देखो याद दिलाती है लम्बी उदास शाम
दुनिया से तो लड़ता रहता हूँ मैं दिन भर
मुझे खुद से डराती है लम्बी उदास शाम
जो पल कटे अच्छे थे, ना कटे वो भी अच्छे
अब पर्दा गिराती है लम्बी उदास शाम