बाद मुद्दत के आईना देखा
जाने किसका चेहरा देखा
अंदर से तो वो टूटा ही मिला
जो भी हमने हँसता देखा
शीश नगर में कल दिवाली थी
हर घर हमने जलता देखा
हक़ को आवाज़ देता कौन
सबको दस्त-बस्ता देखा
किससे ग़म बाँटूँ ‘ओझल’
जो भी देखा, ख़स्ता देखा
बाद मुद्दत के आईना देखा
जाने किसका चेहरा देखा
अंदर से तो वो टूटा ही मिला
जो भी हमने हँसता देखा
शीश नगर में कल दिवाली थी
हर घर हमने जलता देखा
हक़ को आवाज़ देता कौन
सबको दस्त-बस्ता देखा
किससे ग़म बाँटूँ ‘ओझल’
जो भी देखा, ख़स्ता देखा