आईना कैसे कैसे आज़माता है मुझे

आईना कैसे कैसे आज़माता है मुझे
हर सुबह नयी शक्ल दिखाता है मुझे

अभी ना जा मुझे यूँ छोड़ के मेरे दोस्त
तेरे बिन हर लम्हा तेरी याद दिलाता है मुझे

माना इक जुनून था, तेरे इश्क़ में कैसा सुकून था
अब ये दिलकश समाँ भी सताता है मुझे

है तुम्हारी यादों से हर कोना गुलज़ार
तुम्हारा ख़याल यकसा गुदगुदाता है मुझे

हर शाम तुम्हारी यादों में लिपटा सोचता हूँ मैं
हर सुबह आफ़ताब क्यूँ दूर ले जाता है मुझे

 

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