सिर अपना हाँ! गँवा के आया हूँ
मैं दस्तार मगर बचा ले आया हूँ
तुम जन्नत समझते हो जिसको
मैं हक़ीक़त आज़मा के आया हूँ
मेरी ग़ज़लों की ख़ुशबू कहती है
मैं आज कू-ए-जाना से आया हूँ
डरता हूँ कोई उसे पहचान ना ले
मैं जो इक चेहरा छुपा के आया हूँ
मुझे मेरी अना ने आराम ना दिया
मैं जब से इस दुनिया में आया हूँ
मेरे सच पे यक़ीं कोई करे तो कैसे
मैं झूठा परचम लहरा के आया हूँ