एक सुबह दिसंबर की

धुंध में उगता सूरज दे दिखाई
लाल-सफ़ेद ऊन की जैसे बुनाई
सुनाई दे मस्जिद से अज़ान और
मंदिर से तुलसीदास की चौपाई
मिले ऐसी एक सुबह दिसंबर की…

अच्छी लग रही हो धूप की नरमी
हाथों को सेंकती हो चाय की गर्मी
सामने पड़ा हो अखबार सुबह का
बताने को ज़माने की सरगर्मी
मिले ऐसी एक सुबह दिसंबर की…

सुनाई दे कॉलोनी में चारों ओर
खेलते हुए बच्चों का शोर
बागीचे में दिखते हों फूलों के बीच
खेलते पक्षी, नाचते मोर
मिले ऐसी एक सुबह दिसंबर की…

बर्तनों की आवाज़ें आ रही हो
परांठों की खुशबु ललचा रही हो
पैरों पे ताने हुए पुरानी रज़ाई
अम्मा थोड़ा सा झल्ला रही हों
मिले ऐसी एक सुबह दिसंबर की…

और पास में हो तुम मदमाती हुई सी
अपनी खुश्बू से मुझे महकाती हुई सी
याद करके प्रणय के सुखमय पलों को
मुस्कुराती हुई सी, शर्माती हुई सी
मिले ऐसी एक सुबह दिसंबर की…

 

Subscribe to Blog via Email

Receive notifications of new posts by email.

Leave a comment

%d bloggers like this: