जाना चाहिए

थकन कहती है ठहर जाना चाहिए
बहुत चले हैं, अब घर जाना चाहिए

किया है वादा तो वायदे की खातिर
आग के दरिया से गुज़र जाना चाहिए

इक धुंध सी फैली है आज हर सू मेरे
कोई तो बता दे किधर जाना चाहिए

जिस की राह पर मिलें दर्द दूसरों को
तुम्हें उस अहद से मुकर जाना चाहिए

तूफ़ानों से तन्हा लड़ने वाले शजर को
पंछियों के बोझ से बिखर जाना चाहिए

दिल चाहता है इक और खता ‘ओझल’
उम्र कहती है अब सुधर जाना चाहिए

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