दश्त में फूल खिला था, वो तुम थे
बारिश में कतरा धूप का, वो तुम थे
मुझे संवारने में उम्र गुज़ारी जिसने
शायद मैं भूल गया था, वो तुम थे
कारवां की ख्वाहिश क्यूं होती मुझे
दिखाता रहा जो रास्ता, वो तुम थे
उकता के दुनिया से दूर जा बैठा जब
जो साथ मेरे खड़ा रहा, वो तुम थे
वैसे कौन सुनता कहानी मेरी मगर
उससे एक नाम जुड़ा था, वो तुम थे
इक तरफ़ ज़माना था, इक तरफ़ अना
बीच में न पूछो कौन था, वो तुम थे
मेरी हर बदसलूकी के बावजूद मुझे
गले जो लगाता रहा था, वो तुम थे
दूर तक फैला था खामोशी का सहरा
इक आवाज़ का दरिया था, वो तुम थे