शाम से ही सज संवर के
बैठी मैं सोच रही कब से
नयनों में सपने मिलन के
मृदु प्रणय के आलिंगन के
आज रात प्रेम! तुम मिलने
क्या आओगे?
गलियां सारी सोई-सोई सी
रात भी है खोयी-खोयी सी
जी में रह-रह हूक उठती
साँसें भी हैं रूकती-रूकती
किससे पूछूं नाथ! तुम मिलने
कब आओगे?
मन मेरे है अवसाद भरा
है सूना अम्बर व्यर्थ धरा
अविरल बहती अश्रु धारा
लो प्राण-पंछी भी उड़ चला
कुछ तो कहो ओ निठुर! मिलने
कब आओगे|
सुनो! तुम दबे पाँव आना
कोई कुण्डी ना खड़काना
अपने उर से मुझे लगाना
माथे पे चुम्बन दे जाना
देर-सवेर जान! मुझसे मिलने
जब आओगे|