हर लम्हा तकलीफ़ें, हर गाम दुश्वारी
हाय! कैसी हसीन ज़िंदगी है हमारी
हर पल फ़िराक़ का बीता जैसे इक उम्र
तुम बताओ तुमने कैसे एक उम्र गुज़ारी
कभी खाईं थीं तुम्हें ना भूलने की क़समें
और अब तो याद भी नहीं सूरत तुम्हारी
वो बच्चे जो तुम्हारी झिड़की से नहीं डरते
उनके सिर पे है परिवार की ज़िम्मेदारी
ज़िंदगी भर ‘ओझल’ के साथ थे चार यार
मजबूरी, बेचैनी, रुसवाई, लाचारी