तेरी आंखों में शाम करते हुए
थक गया मैं ये काम करते हुए
रौशनी की थी तलब कुछ यूं
बुझ गए हम शाम करते हुए
क्या लुटाएंगे गुज़ारी जिन्होंने
ये उम्र ऐश आराम करते हुए
नाम है ज़रूरी मगर खुद को
ना खो देना नाम करते हुए
आंख खुली तो कैद में थे हम
दूसरों को गुलाम करते हुए
देख लेना चले जायेंगे इक दिन
काम सारे तमाम करते हुए