यार मेरे! छुपा है कहाँ, कुछ तो बता, कुछ तो बता
वीराँ जंगल, गुम रस्ता, कुछ तो बता, कुछ तो बता
चांदनी आयी फिर मेरी उदास छत पे आज की रात
पूछती हुई मेरा पता, कुछ तो बता, कुछ तो बता
कहते फिरते हो मिलने पे क़यामत होगी मगर सोचो
जुदाई क़यामत नहीं क्या, कुछ तो बता, कुछ तो बता
सुना है शाह कुछ नाराज़ है आइनों से आजकल
सच बोल के क्या मिला, कुछ तो बता, कुछ तो बता
अपने ख़त में मैंने पहला लफ़्ज़ तेरे नाम का लिखा
और लिखूँ तो लिखूँ क्या, कुछ तो बता, कुछ तो बता
ये सियासत की आग लगाई जब तुमने ख़ुद-ब-ख़ुद
घर क्यूँ जला, कैसे जला, कुछ तो बता, कुछ तो बता
मेरे सवाल पे चुप है तू, शायद जवाब तवील है
पूरा नहीं कुछ तो बता, कुछ तो बता, कुछ तो बता