मेरी सोई ख़्वाहिशों को फिर जगा दो
मेरा ही कोई गीत तुम फिर गुनगुना दो
मेरे बदन में भरी हैं ज़माने की तारीकियाँ
एक लम्स से मेरी रात फिर जगमगा दो
एक उम्र से क़ैद हूँ मायूसियों के जंगल में
अपनी ज़ुल्फ़ों से मेरी साँसे फिर महका दो
‘ओझल’ को तनहाइयों से डर लगने लगा है
भूले से ही सही एक बार फिर मुस्कुरा दो