ना जाने क्यों हर रिश्ता मो’तबर नहीं होता
मकाँ तो सब बनाते हैं, सबका घर नहीं होता
सिकंदर होने के लिए लश्कर ज़रूरी है मगर
लश्कर के होने से कोई सिकंदर नहीं होता
मुश्किल रास्तों पे जो साथ दे उसे दोस्त मानो
हर शरीक-ए-मंज़िल हमसफ़र नहीं होता
कलेजे से लगाना पड़ता है अपने दुश्मनों को भी
सूली पे लटका हर शख्स पयम्बर नहीं होता
नशा ताक़त का इंसान को भुला देता है ये सच
इंसान का वक़्त हमेशा बराबर नहीं होता
आमद से जिसके हर महफ़िल जगमगा उठे
हर इंसान के पास तो ऐसा हुनर नहीं होता
कुछ तो साज़िश होती है लकीरों की भी इसमें
सीपी में दबा हर ज़र्रा क्यूँ गुहर नहीं होता
हिम्मत, मेहनत और जुनून सब चाहिए वरना
तुम्हारे हज़ार सजदों में असर नहीं होता
कोई फरहाद ही ज़िम्मा लेता है कोह-कनी का
हर किसी के पास ऐसा जिगर नहीं होता