गर मुझको अपनाना नहीं था
तो यूं गले से लगाना नहीं था
ये दुनिया अगर जन्नत नहीं
इस दुनिया में आना नहीं था
रंज है बिखरने पे मेरे तो मुझे
यूं ही छोड़ के जाना नहीं था
हाथ आए ना ख़्वाब भी मेरे
नींद से ऐसे जगाना नहीं था
इक तकल्लुफ ही था दरम्यान
और तो कोई बहाना नहीं था
मैंने कब किया शिकवा मगर
दे के दर्द मुस्कुराना नहीं था