तुम बिन कुछ शामें यूं भी बिताई हैं
बेख़याली में चीज़ें उठाई हैं, गिराई हैं
ज़माने की बातों से डरने वालों कहो
कभी ज़माने ने कोई बात बनाई है
बहुत मायूस थी ज़िन्दगी अपनी
सो तेरी तस्वीर दीवार पे लगाई है
ये इंतज़ार के दिन कहां गुजरते हैं
तेरे बगैर नींद भी कहां आई है
पास होते हो तो बड़ी बेचैनी होती है
दूर रहने में भी कौन सी भलाई है
ये जो गले मिलते हैं कुछ लोग यहां
हमने बस यही दौलत कमाई है