शहर का शहर ही सोया हुआ है
जैसे इसे सुबह से खतरा सा है
मैं एहतराम तो कर लूं उसका
वो किस की धुन में खोया है
तेरी याद के पंछी उतरे छत पर
जाने शाम का इरादा क्या है
कहने को अपना है सारा जहां
देखिए गौर से अपना क्या है
उम्र भर दौड़ते रहे और पाया
खोई मंज़िल, रास्ता, कारवां है
आ के लग जा गले ऐ अज़ल
दिल मेरा अब डूबता जा रहा है
दम तोड़ती है हर ख्वाहिश मेरी
ये किस मोड़ पर मुझे तू मिला है