जी चाहता है मेरा
फ़तह कर लूँ दुनिया
चढ़ जाऊँ एवरेस्ट पे
घूमूँ घंटों पेरिस की गलियों में
या बैठा रहूँ
किसी कॉफ़ी शॉप में
यादों की गर्माहट सेंकता।
जी चाहता है मेरा
लिखूँ कोई लम्बी ग़ज़ल
या फिर कोई ऐसा गीत
जिसे सुनके तुम ख़ुद-ब-ख़ुद
आ गिरो मेरी बाँहों में।
जी चाहता है मेरा
हर पल तुम्हारे साथ का
ना ख़त्म हो कभी
भर दूँ उस में वो रंग सारे
जो तैरते देखे हैं तुम्हारी आँखों में
जी लूँ सदियाँ
मगर…
ज़िंदगी शायद
टुकड़ों में ही मिलती है
हमेशा!