तन्हाई में भी चहकते हुए तुम
सरे बज़्म तनहा होता हुआ मैं
सबसे हँस के मिलते हुए तुम
सबसे नज़रें चुराता हुआ मैं
मुझे देख के शर्माते हुए तुम
तुम्हें देख हाथ मलता हुआ मैं
गुलशन से महकते हुए तुम
ख़ुशबू से मदमाता हुआ मैं
छू के मुझे लजाते हुए तुम
दीवारों से टकराता हुआ मैं
दूर से नज़र आते हुए तुम
ख़ुद से दूर जाता हुआ मैं
मेरे साथ खिलते हुए तुम
तुम्हारे साथ इतराता हुआ मैं
ईद का चाँद होते हुए तुम
और दीवाली मनाता हुआ मैं
मुझसे नाराज़ होते हुए तुम
ज़माने भर से झगड़ता हुआ मैं
आज फिर बरसते हुए तुम
भीग के रक़्स मनाता हुआ मैं
मुझे छोड़ के जाते हुए तुम
इक चिता सा सुलगता हुआ मैं