साथ मेरे रही हर घड़ी उदासी
हरेक सांस में थी पली उदासी
ढूंढते कोई हमसफ़र भला क्यूं
हर क़दम हमें मिली उदासी
मुस्कुराया था मैं इक लम्हे को
बा’द उसके फिर घिरी उदासी
रही पलकों पर टिकी रात भर
सुबह आँखों से टपकी उदासी
खुशी की तरफ़ देखते रहे हम
हमें मगर थी ताकती उदासी
किरन आस की उठी ज़रा सी
ज़माने भर की गिरी उदासी