दबे पांव उतरती है आंगन में शाम यारों
पड़े हैं मेरे सामने कुछ टूटे हुए जाम यारों
ना देखा उसने ही पलट के हमारी ओर
ना हमसे ही लेते बना उसका नाम यारों
बा’द मुद्दत आई याद आज हमारी तुमको
क्या फिर निकल आया कोई काम यारों
किताबें, महफिलें, जाम-ओ-सागर, शायरी
इक टूटे दिल को क्या क्या इंतज़ाम यारों
ठीक है ये ज़िद्द भी कि कोई रोके ना तुम्हें
जाते जाते लेते जाओ आखिरी सलाम यारों
कल भरी महफ़िल मैं देर तक तन्हा रहा
दिया दोस्ती का तुमने अच्छा ईनाम यारों