कोई धड़का सा लगा हुआ है जाने क्यूँ
दिल में इक चोर छिपा बैठा है जाने क्यूँ
यूँ तो मेरी राह से कितने हसीन गुज़रे हैं
तू मेरी आँखों में बस गया है जाने क्यूँ
ये मेरी सादा-दिली है या ख़ुश-फ़हमी
अब भी तेरे वादे पे भरोसा है जाने क्यूँ
हुआ है ऐलान-ए-ख़ुशहाली शहर में
मगर हर चेहरा रुआँसा है जाने क्यूँ
बात इतनी है कि बात मुकम्मल ना हुई
जवाब का तुझसे तक़ाज़ा है जाने क्यूँ
सुनी है वैसे कहानी ये कई बार हमने
अब के उन्वान कुछ नया है जाने क्यूँ